मुझे न करना याद - गोपालदास नीरज


मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा!


रोज रात को नींद चुरा ले जायेगी पपिहों की टोली,


रोज प्रात को पीर जगाने आयेगी कोयल की बोली,


रोज दुपहरी में तुमसे कुछ कथा कहेंगी सूनी गलियाँ,


रोज साँझ को आँख भिगो जायेंगी कुछ मुरझाई कलियाँ,


यह सब होगा, पर न दुःखी तुम होना मेरी मुक्त-केशिनी !


तुम सिसकोगी वहाँ, यहाँ यह पग बोझीला हो जायेगा।


मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा।।


कभी लगेगा तुम्हें कि जैसे दूर कहीं गाता हो कोई,


कभी तुम्हें मालूम पड़ेगा आँचल छू जाता हो कोई,


कभीसुनोगी तुम कि कहीं से किसी दिशा ने तुम्हें पुकारा,


कभी दिखेगा तुम्हें कि जैसे बात कर रहा हो हर तारा


पर न तड़पना, पर न बिलखना, पर न आँख भर-भर लाना तुम


तुम्हें तड़पता देख विरह-शुक और हठीला हो जायेगा !


मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा।।


याद सुखद उसकी बस जग में होकर भी दूर, पास हो,


किन्तु व्यर्थ उसकी सुधि करना जिसके मिलने की न आस हो,


मैं अब इतनी दूर कि जितनी सागर से मरूथल की दूरी,


और अभी क्या ठीक कहाँ ले जाये जीवन की मजबूरी,


गीत-हंस के हाथ इसलिए मुझको मत भेजना संदेशा,


मुझको मिटता देख, तुम्हारा स्वर दर्दीला हो जायेगा


मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा।।


मैंने कब यह चाहा मुझको याद करो, जग को तुम भूलो ?


मेरी यही रही ख्वाहिश बस मैं जिस जगह झरूँ, तुम फूलो


शूल मुझे दो जिससे वे चुभ सकें न किसी अन्य के पग में,


और फूल जाओ-ले आओ बिखराओ जन-जन के मग में,


यही प्रेम की रीति कि सब कुछ देता, केन्तु न कुछ लेता है,


यदि तुमने कुछ दिया प्रेम का बन्धन ढीला हो जायेगा।


मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा।।