गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराए।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।।
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाये।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।